शनिवार, 16 अगस्त 2014

प्रसंग किरण जीः किछ जप, किछ गप

मैथिली'क किरण जी आ किरण जी'क मैथिली। किरण जी, अर्थात डॉ. काञ्चीनाथ झा 'किरण'। मैथिली भाषा, साहित्य, समाज'क युग पुरुष। मैथिली'क सामने जे कठिनाह डगर ओहि पर डेगाडेगी करबा स पहिने किरण जी'क समय, संगी, साथी, परिवेश के बुझनाइ जरूरी, ताञ आइ किरण जी के बुझनाइ जरूरी अछि। 

किरणजी नास्तिक छलाह। विद्यापति भक्त कवि। किरणजी राज विरोधी नहियो त राज विरक्त। विद्यापति राज कवि। तैयो किरणजी विद्यापतिक नाम पर मैथिली आंदोलन क प्रारंभ करबा स कोना आ कियेक जुड़ि गेलाह! किरणजी कहैत छैथ (किरण समग्र, एक, निबंध, यात्री-नागार्जुन) ▬▬
"विद्यापति जयन्ती” मनौल (1931 क प्रसंग)। म.. मुकुन्द झा बक्सी अध्यक्ष। स्वागत कयनिहार न्यायवेदान्त मूर्ति बालकृष्ण मिश्र। उपस्थित विद्वानमे पण्डित प्रकाण्ड मण्डल गेनालाल चौधरी, बलदेव मिश्र, सीताराम झा, बालबोध मिश्र, आनन्द झा. राधाकान्त झा, चन्द्रशेखर झा आदि। हिनका लोकनिक आगमन सुनि स्थानीय संस्कृत कॉलेजक विद्वान लोकनि जुमि गेलाह।
मिथिलाक गौरव-गाथा सँ वायुमंडल मुखरित भ' गेल। समारोहक परिणाम बड़ सुखद भेल। जे अपनाकेँ मैथिल मानि अनुग्रह करैत छलाह से मैथिल कहयबा मे गौरवक अनुभव करय लगलाह।....
ई परिवर्तन भेल विद्यापति जयन्तीक एक दिनक समारोह सँ आ' तकर सूझ देने छलाह वैदेहजी (बादमे यात्री/ नागार्जुन)। तञ हमर मन मानि लेलक जे चेहरे-मोहरे लटपटाह रहितहुँ भितरका बिन्हा बुधिआर छैथ।''

नागार्जुन सेहो नास्तिक। आब देखियौ जे ई दुनू नास्तिक साहित्यिक मिलक' भक्त कवि विद्यापतिकेँ मैथिली आंदोलनक' लेल महत्त्वपूर्ण मानलनि आ मिथिलामे विद्यापति स्मृति समारोहक' प्रारंभ कयलनि त एकरा कने धैर्य सँ बूझबाक दरकार अछि। पहिल आयोजनक जे सुखद परिणाम भेटलनि ओ किरणजीक लेल एहि संघर्ष पथक अशेष पाथेय भ गेलनि। एहि आयोजनक मुख्य लक्ष्य विद्यापतिक महत्त्वक स्थापना नहि भ'', विद्यापतिक नाम पर मिथिला समाजकेँ एकत्र क' मैथिल राष्ट्रबोधक उद्यापन बुझना जाइत अछि। मैथिल राष्ट्रबोधक बेगरता की? आजादीक आंदोलनक अध-बीच ई प्रसंग उठि गेल छलैक जे आजाद भारतक संरचनामे भिन्न जाति/ उपराष्ट्र/ भाषा/ समुदाय/ धर्मावलंबी आदिक स्थान की हेतैक। भाषावार राज्य गठनक आधार उभरि रहल छलै। भारत गणराज्यमे रहिक एकटा मैथिल राज्यक स्थापना स्वशासन के अधिक व्यावहारिक बना सकैत छलैक। मैथिली भाषा मैथिल उपराष्ट्र/ जातिक आधार नहि बनि सकल छलैक। ओकर किएक टा कारण भ सकैत छैक, ओहि पर विस्तार सँ अनत गप कयल जा सकैत अछि। मुदा एतबा मन पाड़ि देनाइ जरूरी जे राष्ट्रवादक उभार मे छापाखानाक, अर्थात भाखा मे साहित्यक छपेनाई आ समाज मे ओकर प्रचार प्रसार आ स्वीकृति परम आवश्यक उपकरण छलै। बंगाल सँ बिहार अलग भेल, मुदा मैथिल समाजक प्रश्न अनुत्तरित रहल। मैथिलीक संघर्ष ठामकठामहिं!

विद्यापति स्मृति समारोह जरूर अपेक्षाकृत लोकप्रिय भेल, मुदा मैथिल राष्ट्रबोधक उद्यापनक अपन मुख्य लक्ष्य सँ भोतिआयल जकाँ भ गेल। जकर गंतव्य बोध बिसरा जाइ छै, ओकर रास्ता हरा अवश्ये जाइ छै! एहेन यात्री चलैत त' रहैत अछि, मुदा पहुँचैत कतौ नहि अछि! ''विद्यापति स्मृति दिवसक स्वरूप'' नाम सं मिथिला मिहिर, 22 नवम्बर 1964 में प्रकाशित लेखमे किरणजी कहैत छैथः
''गत किछु वर्ष सँ विद्यापति स्मृति दिवस बेस व्यापक रूपेँ मनाओल जा रहल अछि। मुदा जत' समारोहसँ मनाओल जाइत तत एकर रूप हमर मतेँ भोतिआयल-सन रहैछ। हमरा लोकनि रवीन्द्र जयन्तीकस्वरूपकेँ आदर्श बनाय विद्यापतिओ दिवसक आयोजन कर' लागल छी। विद्यापति-संगीत, विद्यापति-नृत्य, विद्यापति पदावलीक विवेचन आदिकेँ प्रधानता भेट' लागल अछि। आब तँ विद्यापतिक समस्त ग्रन्थक आलोचनाक आयोजन भ' रहल अछि।
जखन भारत स्वाधीन नहि भेल छल, तहिया छब्बीस जनवरीकेँ गणतंत्र दिवसक जे रूप छलैक, ताहिसँ कतेक भिन्न अछि आजुक गणतंत्र दिवसक रूप?
हमरा जनैत, एहने अन्तर रहक चाही विद्यापति स्मृति दिवसक आ रवीन्द्रनाथ स्मृति दिवसक रूपमे।.... मैथिल समाजमे, स्वराज्यसँ पूर्वक स्वदेशी भावनाकेँ उत्पन्न करब, ओकर पोषण संबर्धन करबे आवश्यक। मैथिली एखन संघर्षक स्थितिमे अछि। संघर्षक स्थिति मे शक्तिक संचय, साधनक संग्रह तथा बलिदानक पाठ अनिवार्य छैक, तखने संघर्ष मे बल अबैत छैक। एहि विषय पर ध्यान रखैत विद्यापति स्मृति समारोहक रूपरेखा बनब उचित।''

आइ मैथिल समाजक सब स्तरक सामाजिक समूह, व्यक्ति, विद्यापति समारोह मनाववाला अनुरागी लोक आ संस्था, विद्यार्थी सबकेँ जोड़िक मैथिल समाजमे, स्वराज्यसँ पूर्वक स्वदेशी भावनाकेँ उत्पन्न करब, ओकर पोषण संबर्धन करब की संभव हेतै...? 

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