रविवार, 14 सितंबर 2014

अढ़ौने काज नञ कि सिखौने लाज

अढ़ौने काज नञ कि सिखौने लाज
हुलकौने कहिओ कि धरए सिकार
हँ, मारब माछ, नञ उपछब खत्ता
हँ, मारब माछ नञ, उपछब खत्ता
नञ मारब माछ नञ उपछब खत्ता
चल समेट भाभट आ कपड़ा लत्ता
दिल्ली आ कि आब छूछे कलकत्ता

टाँग पसारि घरे बैसि'क पेट डेंगाबे
मुरछल थुथुन के आब, के सोहराबे
घर आबए पाहुन, त लुत्ती लगाबे
हाथमे पथिया ल'क महिस दुहाबे
ई जिनगी हमरा की नाच नचाबे
सदिखन टीप'क बाजे आ लहराबे
एक कहौ जँ एकरा, दस दोहराबे
चुप्पा आँखि नचाबे, मुँह चमकाबे

अढ़ौने काज नञ कि सिखौने लाज
हुलकौने कहिओ कि धरए शिकार


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