मंगलवार, 12 अगस्त 2014

उच्चवाचिकता क संभावना स पूर्ण आ लोक बेबहारी

कुल जमा ई जे, मैथिली मातृभाषा अछि। हम ई नीक जकाँ बुझै छिये जे मातृभाषा भेला मात्र सँ नञ त कोनो भाषिक दक्षता भेटि जाइत छैक ने प्रामाणिकता। तखन इहो जे, मातृभाषा हेबा सँ ओहि भाषाक नैसर्गिक भंगिमा आ लोक व्यवहार स परिचय जरूर रहै छै। भाषा क मूल रूप बजनाइ, कहि सकैत छी मौखिक होइत छै। मौखिक गप्प के लिखित रूप में दर्ज करबाक क्रम में भाषा क मानक स्वरूप बनैत चलै छै। कने आर फरिछा क ई जे भाषा क मानक स्वरूप जड़ आ अपरिवर्त्तनीय नञ बरंचि, गतिमान आ परिवर्त्तनशील होइत छै ▬▬ जै भाषा क मानक स्वरूप जड़ आ अपरिवर्त्तनीय भ जाइत छैक ओ बहुत झटकिचाल में लोक व्यवहार स बाहर भ जाइ लेल बाध्य भ जाइत अछि। जदपि, लोक व्यवहार स बाहर भेल एहन भाषा लिखित रूप में उपलब्ध रहैत छैक, उदाहरण संस्कृत। मैथिली क प्रामाणिक आ मानक रूप क अवगैत हमरा, नञ ताञ ई भ सकैत छै जे हम भाषा क मादे गतिमानता आ परिवर्त्तनशीलता पर बेशी जोर द रहल होइ। जे होइ हम ई कहै छी जे, हमरा मानक वा प्रतिष्ठित मैथिली नञ अबैत अछि। सत पूछी त हमरा जीवनक कोनो क्षेत्र क किछुओ मानक वा प्रतिष्ठित नञ अनबैत अछि। विद्वान सभक आशंकित कटाक्ष के बुझबा बा प्रतिकारक बोध हमरा नञ बर्दाश्त करबाक सहास अछि। कटाक्षक कटौंछ में अपना के औझरेने बिना सीख लेबाक उहि अछि ▬▬ जेना मोबाइल आ कंप्यूटर पर काज करबाक मानक जानकारी क बिना हम अपन काज क लै छी, इहो काज क लेब। असगरे! नञ-नञ, मोबाइल आ कंप्यूटरो परक काज असगरे कहाँ होइत छै।



नबतूरीया सब स हमरा बेशी आशा। नवतूरीया में सिखबाक आ व्यवहारक तत्परता बेशी होइत छैन। आवेग सेहो। हुनके संगे हमहुँ तत्परता आ वेग स अपना के जोड़ि लेब। मुदा नबतूरीया त जीवन-यापन, यौबन-जीबन क भाँति-भाँतिक समस्या अभाव सँ जूझि रहल छैथ। मैथिली में खाली किछ साहित्य, किछ लोक गीत, पबनितहारे नाटक बाकी सब! तैयो हमरा बूझल अछि जे कचौंह आम क अम्मट नञ होइ छै आ गोपी आम क कुच्चा नञ होइ छै। अम्मट आ कुच्चा दूनू जरूरी त सत्ते मुदा हमरा त अखैन भाँस दिय... 

कान में कहै छी, एतेक गहन स्वर-संयुक्ति मैथिली क जीवंत आ अनिवार्य गतिशील, अ-मानक स्वरूप स समृद्ध करैत छै। आ ताञ मैथिली आत्यंतिक रूपे उच्चवाचिकता क संभावना स पूर्ण आ लोक बेबहारी भाषा अछि।



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