शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

लुटेलौ बाउ रे तोहर गठरी

दालि दररी, दालि दर्ररी किए दालि दररी?
बाबा पोखैर में बड़ मछरी, माए बड़ मछरी!
पोखैर मे कनियो पानि नञ सुखाएल गगरी
ताञ दालि दररी, हिलमिलि क दालि दररी
बरद बिकाएल जेहि दिन छलौं सब कछरी
खेत मे हाल नञ, बियो के भ गेलै सुनबहरी
कत स एलौ दालि झूठहि गबै छैं दालि दररी
खिस्सा में दालि, सुखाएल खेत में की कजरी
आँखिए में पानि, सपनहिं में चुलबुल मछरी
एक मुट्ठी भात लेल पूषहि मे मुहँ पर फिफरी
एत ओत जत तत लुटेलौ बाउ रे तोहर गठरी
दालि दररी, दालि दर्ररी किए दालि दररी?
बाबा पोखैर में बड़ मछरी, माए बड़ मछरी!

घोर-मट्ठा, घोर-मट्ठा माएक मन में फुटै इन्होर

हिनकर डोका सनक आँखि के देखियौन आ सीपी सनक ठोर
मोथियाएल केश गाल सिनुरिया टहटह झहरैन धीप्पल नोर
घोर-मट्ठा, घोर-मट्ठा
राति इजोरिया झमझम नाचैन, है कतेक जल्दी भ गेलै भोर
कौआ कुर्ररल, पड़वा जागल नैहर-सासुर, भेलै सौंसे हहकोर
नवगछली के महमह मोजर कक्का-भैया करता कतेक अगोर
भाउजक सोझा थरथर काँपै फागुन माएक मन में फुटै इन्होर
घोर-मट्ठा, घोर-मट्ठा
कल्हुका जनमल, शीशो सन देह कदम्ब सन भेलै कोना चकोर
फागुन नञ दोखी! मन मे रहैए छपाएल ई बरमसिया हिलोर
घोर-मट्ठा घोर-मट्ठा घोर-मट्ठा, भरि गामहिं खाली मट्ठा-घोर
हिनकर डोका सनक आँखि के देखियौन आ सीपी सनक ठोर