जाहि में सबहक हित
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आई विशेष दिन अछि हमरा जीवन क, उचित जे मातृभाषा में गपशप करी। जहां तक साहित्यक प्रसंग, हमरो कंठ पहिल बेर मैथिली में फूटल छल। शुरुआती दौर में मैथिली म लिखल छपल। प्रारंभिक अभ्यास मैथिली में कएल। तकर बाद हिंदी में अभ्यास शुरू कएल। ई सते जे नहुनहु मैथिली स बेसी हिंदी में ढाही लेब लगलौं। हिंदी आ मैथिली में कोनो आत्मगत विरोध नहि अभरल। ई कहबा में कोनो संकोच नहि जे हिंदी में मैथिलीए लिखै छी, आब से जेहन लिखैत होई। एतबे नहि, हम त इहो लिख-बाजि चूकल छी बाबा सेहो हिंदी में मैथिलीए लिखैत छलाह। जखन जीबन कल्ला पर मसल्ला पिसैक फानी बान्ह बिछब लगैत अछि मुह स मैथिलीए निकलैत अछि, कखनो अंग्रेजी क कोट आ अधिकतर हिंदी क मिरजई पहिरक।
अखन त करोना क डरे जतै छी सुटकल छी। नहि जानि, कते दिन सुटकल रह परत, तखन जाहि में सबहक हित।