धिक जीवन, धिक कर्मकांड, धिक शिक्षा-दीक्षा, धिक-धिक यह समाज
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पचहत्तर के पार भी नहीं बचती
क्या माँ को सिखाऊँ
चलने का रिवाज!
सोलह की बच्ची पर बीतती है
सिखाऊँ बेटी को
करना बड़ों का लिहाज!
इस तरह नहीं भला!
तो चल अब तू ही बता!
बता की किस तरह से
निरीह पर गिरती है गाज!
और चीखता है कोई
जोर से, हाँ जोर से
डेमोक्रेसी जिंदाबाद!
डेमोक्रेसी के नाम पर,
शैतानी राज!
कानूनन के रक्षक!
कब तक लौटेगा
शासन के मन में
रत्ती भर वोट लाज!
पूँजी के पगहा बन जाने से
आदमी विस्फोटक में
बदल जाता,
यह नहीं राज!
धिक जीवन, धिक कर्मकांड,
धिक शिक्षा-दीक्षा,
धिक-धिक!
धिक यह समाज!