रविवार, 16 अप्रैल 2023

हुकरि सकैत छी, से हुकरि रहल छी

 हुकरि सकैत छी, से हुकरि रहल छी

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संयोगे छल जे हमरा हुनका स बतकही शुरू भ गेल। तीन पुश्त स ओ सब इलाहाबाद, आब प्रयागराज, क बाशिंदा छला। नाम स बंगाली बुझना गेला। हिंदी पछाही बजै छला। हम पूछलियैन जे बांग्ला बजै छी घर परिवार में आ कि हिंदी। आत्मदंभ, आत्म-सम्मान सेहो कहल जा सकैत अछि जागि गेलैन। कहलैन जे कतौ रहथि, कतबो दिन स रहैथ, अपन जीतीय संस्कृति के जीबैत रहैत छैथ। हमरा पूछलैन जे अहाँ त बिहारी छी। हम कहलियैन हँ, बिहारी कहि सकैत छी, मुदा हम मैथिल छी। ओ कहलैन एके गप्प छै। हम कहलियैन नहिं। सब बिहारी मैथिल नहिं होइत छैथ। आ मैथिल त बिहार क बाहरो रहैत छैथ। ओ हलैन अच्छा! जेना! जेना, नेपाल। हँसैत कहलैन ओ। मन पड़ल बहुत पहिने मैथिली बाँग्ला जकाँ लिखल जाइत छलै। हम कहलियैन जे नहिं। बाँग्ला मैथिली जकाँ लिखल जाइत छलै। बाँग्ला क मानल गेल पहिल कवि त मैथिल छलाह, विद्यापति। विद्यापति क नाम सुनि कने ठमकला। कहलैन जे अहाँ सभ क भाषा साहित्य बाँग्ला जकाँ विकसित नै भेल। जकाँ विकसित नै भेल, एकर मतलब ई नहिं जे विकसित नहिं भेल। आर्थिक राजनीतिक साहचर्य आ भौगोलिक परिस्थिति पर बहुत किछ निर्भर करैत छै। गुड बॉय कहैत ओ चलि गेला।

हमरा मन मे मैथिल जातीयता क सवाल फेर हौंड़ लागल। मैथिल जातीयता क पहिचान पर आर्थिक राजनीतिक साहचर्य आ भौगोलिक परिस्थिति से पाछू छोड़ैत खाली भाषा आ साहित्य क पाछू दौड़ैत छी। भाषा साहित्य क संबल आवश्यक मुदा आर्थिक राजनीतिक साहचर्य आ भौगोलिक परिस्थिति क सहार नेने बिना कि संभव। मैथिल जातीयता क ललक त हमरा मन मे अछि। की क सकैत छी! ज एते दिन किछु नहिं केलौं त आब की क सकैत छी! हुकरि सकैत छी, से