हुकरि सकैत छी, से हुकरि रहल छी
-----
संयोगे छल जे
हमरा हुनका स बतकही शुरू भ गेल। तीन पुश्त स ओ सब इलाहाबाद, आब प्रयागराज, क
बाशिंदा छला। नाम स बंगाली बुझना गेला। हिंदी पछाही बजै छला। हम पूछलियैन जे
बांग्ला बजै छी घर परिवार में आ कि हिंदी। आत्मदंभ, आत्म-सम्मान सेहो कहल जा सकैत अछि
जागि गेलैन। कहलैन जे कतौ रहथि, कतबो दिन स रहैथ, अपन जीतीय संस्कृति के जीबैत
रहैत छैथ। हमरा पूछलैन जे अहाँ त बिहारी छी। हम कहलियैन हँ, बिहारी कहि सकैत छी,
मुदा हम मैथिल छी। ओ कहलैन एके गप्प छै। हम कहलियैन नहिं। सब बिहारी मैथिल नहिं
होइत छैथ। आ मैथिल त बिहार क बाहरो रहैत छैथ। ओ हलैन अच्छा!
जेना! जेना, नेपाल। हँसैत कहलैन ओ। मन पड़ल
बहुत पहिने मैथिली बाँग्ला जकाँ लिखल जाइत छलै। हम कहलियैन जे नहिं। बाँग्ला
मैथिली जकाँ लिखल जाइत छलै। बाँग्ला क मानल गेल पहिल कवि त मैथिल छलाह, विद्यापति।
विद्यापति क नाम सुनि कने ठमकला। कहलैन जे अहाँ सभ क भाषा साहित्य बाँग्ला जकाँ
विकसित नै भेल। जकाँ विकसित नै भेल, एकर मतलब ई नहिं जे विकसित नहिं भेल। आर्थिक राजनीतिक
साहचर्य आ भौगोलिक परिस्थिति पर बहुत किछ निर्भर करैत छै। गुड बॉय कहैत ओ चलि गेला।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अनुरोध जे, सुधार क अवसर दी आ विषय स संबंधित सुझाव अवश्ये दी। व्यक्तिगत टिप्पणी नञ दी।