रविवार, 13 अगस्त 2023

बकझोझों नै, इति गोंगायन -- प्रथम सोपाने नमोनम:

बकझोझों नै, इति गोंगायन --

प्रथम सोपाने नमोनम:

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पहिने कहने रहैथ। हे बाटघाट बकझोझों नै कर लागब। जमाना खराब छै। मन नै मानलक। एहनो हय छै। बाटघाट चलैत दस गोटे स देखा सुनी होय छै। लोक बजतै भुकतै नै! बौक भ जेतै!

बेस बेस। निकलि त गेलौं। तेहेन कियो नै भेटल जे टोकोटाकी होइत। सब के मन में इएह बैस गेल छै ¾ रास्ता घाट मुह सिने रही। हमरा किछ किनबाक नै रहे तैयो हाथ में एक टा झोरा रहे। कत जाइ! कत जि! बिदा भेलौं त पहुँचि गेलौं हाट पर। तखन ई कहनाइ मुश्किले बूझाइछ जे लोक हाट जाइ छै कि हाटे लोक लग आबि जाइ छै। अइ दोकान। ओइ दोकान। आधा स वेसी लोक दाम सुनि चुपचाप दोसर दिस घुसकैत जाइ छल। हमरा भेल जे कहिये ¾ एना ज घुसकल जाइत छी सिरीमान त घुसकैत घुसकैत बजार स बाहर भ जाएब। किछ किनू बेसाहू नहियो त बजार में बनल रहू। मुदा बकझोझों क डरे चुपे रही। सोचिते रही ताबे एक गोटे पुछलैन की लेबाक अछि बुढ़ा। रहैथ ओ हमरा स बैसगर मुदा! हम अचमके पलटि क देख लियेन। चिन्हार लोक नै बुझना गेला। ओहुना आइ काल्हि चिन्हार अनचिन्हार में कोनो भेद नै। जेना सगुन निरगुन में भेद नै। गरीब गुरबा पर चढ़ाव लेल समाज साकार, बचाव लेल निराकार! गरजे अनचिन्हार चिनहार, अपना गरज भेल त चिन्हार अनचिन्हार। गरज बुझिये चिन्हार अनचिन्हारक ताल मातरा बुझबा में अबै छै। हम अहि में ओझराइल रही। ओ कहलनि हमहु किछ बेसाह नै एलौं। लोक के दोकान सब में दर सुनि घुसकैत देखि हमरा एक तरह क आनंदे भेटैत अछि। लचार क साक्षात दरसन में जे आनंद छै से आर कत। एहि पर की कहियैन! आगू बजला एहि आनंद क पेट स विचार बहराइत छै। कहियो तुरते, कहियो कने देरी स। ओहि विचार के जाक अंगना के सुनबै छियैन त कहियो काल ओहो मानि जाइच छैथ ¾ अनेरे नै छिछिया एलौं! कहलैन त ठीके! आ बजारे स टटका विचार निकलै छै। बाजर क विचार आ विचारक बजार! जे सुख पाबि नचार निहारि में तेहने सुख बटमारी मे! ई कहि ओ घसैक गेला। मत सुन्न के डाकदर बैद क दबाइ नै, बजारक हवा खुएला स अबशे निकासी भ सकैत छै ¾ नै बुझलियै, माने बजार बायु। हमरा देखि हुनका संतोख भेलैन, बिना बकझोझों केने बुलि एलौं। ओ बेचारो के कोनो ज्ञान नै जे हम बजाररोपख्यान क संग बाजर बायु उपचार क विचार लुत्ती ल क आयल छी, सेहो बिना बाक ब्यय व बाक बिनिमय केने। बजार बायु में ब्याप्त निनादहीन सिंहनाद, वज्रनाद, शंखनाद फुस्सफुस्सी में भरि आएल छी ¾ बाजर पूर्व आ बजार पश्च गुरुदत्त एके नै। आह कि विभोरी दृश्य! दोकानदार कहै, ठाँयठाँय, गाहक गोंगएल जाय! बकझोझों नै, इति गोंगायन¾ प्रथम सोपाने नमोनम: ।

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