शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

टिप्पी नाम देलखिन तारानंद वियोगी

हे यै.... सुनै छियै...
बहिर नै छी...
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कने दिखियो त...
आब देखवा जोगरक की रहि गेल अछि


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हे हे... हम जगले छी....
सुति नै होइए..! अन्हरा के जगने की, आ सुतने की.... फुसियाही सएँ लेल ... ! नीन कामै!

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यौ .. . यौ सरकार खसै छ त की होइ छै..
इह बताहि... एतै बएस भेल... इहो नै अनुभव भेल... सरकार खसै छै त सरकार फेर ठाढ़ भ जाइ छै... आर की होइ छै...सरकार खसै छै.. सरकार उठै छै... जेना घुघुमना... पुरान घर खसे, नव घर उठे... एत सब सरकार.. सरकारो के सरकार... ई सब नै पूछी...

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दौड़-दौड़ अबै छैथ...बाप क कोंढ़ खेता से नै त एत हुड़िया राखल छैन... अजबारल बदमाश.. भुल्ली बिलाड़ि के घरे सिकार...

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हे चुप करै खूब चिन्है छियौ... बाप नवगछली में बेल टेबैत-टेबैत चितंग भेलैन आ ई एलाहे खोंइछा खोल ... भाग नै त खोंइचा छोड़ा देब...
-- हे एना नै... ! अछाहे कुकुर भुकै छै... कहलियौ ल त बुझलहि क... चोर छौ मन में चोर... मन क गप माने चोर क गप... चिरौरी ने ...
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इह्ह... भगल कि... सरंगपताली भूइंया डेढ़... आँखि मे पानि नै दलान पर पोखरि... खत्ते-लत्ते थुथुन रगड़ैत जीवन बीतलनि... एलाहे बड़का पंच-पछार...लिहो-लिहो... इस्स... गप्प करै छैथ.. ढेका कत आ साँची कत बुझिते नै छथिन ... गप ने लिअ हिनका स... रोजगार लिअ... हुनकर... छोहारा किसमिस स.... आ धुर जी..
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हँ हँ! बाबू भैया... बड़का बऔआ... गिरहत सब मधुबनी कहै छथिन्ह... हम सब त मधमनि कहै छियै... मधमनि माने मिथिला क मध्यमणि... हकार ने बकार इस्स बड़का खौकार... हमर पिउ मधमनि... अइ धुर छोड़ू मध माने बीच... भेल... तंग करै छएँ... एक टा गप कहलियौ त खोइँचा छोड़बै छएँ... जो हम त कहबै मधमनि--मधमनि..मधमनि.. ..भेलौ संतोख...
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की सतनरैन भखै छी... सिब-सिब क... खोलू धरिया... उतरू पार, ई नदिया के इएह बेबहार... हाथ मे छदाम नै....मुँह मे लगाम... कत पटना.. कत दिल्ली, मनोरथ पूरअ चलला झंझारपुर निरमल्ली ... कहलैन बाबा छोड़ सकरी आ लपकअ ककरी... गौ माता पर हँसै छ बकरी... ने धान ने पान... हाथ मे खखरी... रे बदरी आगि जरौ तोहर मनोरथ मे .... मन छौ धगजरी....मुसहरी...
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चूरा ने दही... चीनी लए छिछिऔनी... गत्तर में लाज ने घर मे अनाज ने... घर मे भूजी भाँग ने बुलेट क माँग...बुलेट लेल अनघोल... हे मुँह जुनि घुकचियाऔ.... सासुर .... स नै... सरकार.. जो रे अपाटक... गप छँटै मे जगजीता... अररनेवा के कहै पपीता... भरि दुनिया मे रेलगाड़ी पसरि गेलै आ ई लोक छोटकी लाइन में झिझिर कोना खेलाइत रहला सब हवाई जहाज मे उड़ लगलै त भरि मिथिला मे लोक नाच लगलै... बड़ी लाइन के गाड़ी एलै.. पीीीीपीीी... आब लिअ ने बुलेट ..... फुरफुर...फुर्र्रररररर....
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की करअय छी...दनौरी खोंटै छी! आ धुर जाऊ... किछ त लाज करू...भरि जिनगी खोंटिते रह गेलौं.. कखनो दनौरी तो कखनो बड़ी आ सब टा बड़ी काँचे... गाम क लेखे ओझा बताह... ओझा लेखे गाम बताह... कपारे बौक त करम की करतनि... बस करैत रहू हाथ मे खुरपी काँख तर छिट्टा ... ओलती मे पेना डाँड़ मे चुनौटी फेर बाढ़ि एतै... मुदा तइ स की... बाढ़ि मे जतबा दहाय छै तै स बेसी ओकर राहत मे दहाय छै... मुट्ठी भरि चूरा आ एक ढेपा गुड़... जय बम भोले ... हरअ हरअ,,, घरअ घरअ... करैत रहब... धरअ धरअ त बोले ने फुटइए ,,, भरि कल्ला गुड़ चाउर... गोंगिआइत रहू बा पारू भोकार... फेर भोट हेतै. .. आह महमहमहमह... ताबे खोंटैत रहू...
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जो रे ढहलेलबा ..... कहियो कि... तोरा... सोहारी के कहै छिही रोटी... गोटी के टबलेट... गीत के गाना ... गेल रही ने हरियाना.... देखलियै ने नवका रामहीम... ई बलचनमा ने घर रहा ने रहा बाहर.... घर मे छुछन्नर करै छैन उपद्रव.... बाहर मे मूस सिकंदर... कनखोजा कुकुर माँड़ै तिरपित... जनता वैदनाथ गामे-गामे ठाम-कुठामे बौआइत रहला इएह तरौनी की उएह बरौनी... एम्हर ठाढ़ी त ओम्हर गीदड़गंज... रे अन्हरा नै रे अन्नहारा...अन्नहारा स परायल फुलेसरा... ठाढ़े रहली फुलेसरी त भ गेलै अन्हरा ठाढ़ी... ई बत बौकी की सुनै छी.. तखनि त धन फुलेसरी जे डेबलक गाम... कहबौ त लगतौ छक सना .... सतर बरिस स इएहे सुराज कहतौ के जे खा लिअ बौआ टुप सना... ईह्ह बुड़ि क बखारी...... मधमनि में मूँग तकै छैथ ... खेरही कहैत जीह टुटै छैन .... करता धरता सुथन्नी ने टेबैत रहता गोटगर आम... सेबैत रहता बड़का दरबार घोंटैत रहता भाँग... मन के सँठता से नै त भजियाबै छैथ सोंटा... अबहि अइ बेर देबअ नोटा.... की करू बाबा बेदरि भेलै गाम ..... बउआ गेल बौआ... भेटलै ने कतौ ठाहर आ ने कोनो ठाम.. तखन त बुड़िया गेल बेटा आ हरा गेल लोटा... मुँह की देखै छियै मालिक देखियौ ने झोंटा... पित्ता गेल अइ मन ताँइ कहलिये अबहि अइ बेर देबअ नोटा...
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हे देखै छी सबटा... खूब करै छी... सब बुझै छी... एक ठाम चित्ते ने टिकै छैन... जे बर इन्होर स ने नहाइथ से सती हुअ जाइथ... पुरुख सती ने होइ छै... इह ...बाबा..... बाबा रटिते करिते प्राण घिघिआइ छैन... मैथिली मे दंड पेलै छैथ ....ने तिरसठि बरिसक लालू साहू के चिन्है छथिन ने एफ़.एस. बाखरे के नाम सुनने छथिन्ह ने सलेमताबाद के लग पास गेला कहियो.... बुझथिन केना जे पुरुख सती होइ छै आ कि नै होइ छै... ई कोनो नीक गप नै मुदा अधलाहो त होइते छै.... मर ई कोन चीक्कन गप जे बौह के बियाहि क बिदा भ गेलौं कथि दनि क चरवाही में... जिनगी बिता देलौं फुसियाही क बहबाही मे... हे अखनो कहै छी... भरि जिनगी कचराही ... की बोला रे बोंघैया कचराही ने बुझता है... पढ़ेगा रेणु के तब ने समझेगा रे दुलरु कि कचराही का होता है.... फराठी आ लाठी मे अंतर भुझाइते ने छै.... कचाराही के सेबैत-सेबैत जमन बीत गेलेन ... की मजाल जे एक अछर ज सोझ स लपेटने होथि... आब चललाहए मदरटंग ... इह्ह... किदनि ने चलए त केरा क भार... हे टंगटंग करैत रहि जेब ... अंतकाल मे भखैथ रहब ... जो रे रोहैन ने घर रहा आ ने रहा बाहर,,, आह रे...ने पढ़ने छ रवि बाबू क घरे बाइरे... हे ने पढ़ने छी.... त गेले घर छी... सोचि लिअ... बुवबुल चलली खंजन क चालि, अपनो चालि लेलैन बिगाड़ि... की कचराही की मदरटंग... सब ऊटपटंग... डँड़ किल्ला स पोन खस्सा नीक आ तोरा स त सौगना नीक... जे इच्छा से कर... बिन मँगने देब त कने चून दअ दए... आ करैत रहू टंग-टंग... हे हे रे सब देखता् है... मालिकक खेत मे महिस ... रबाड़ि क देगा.... इहाँ कोनो हम टंग-टंग करने नै बइठे हैं.. एक रत्ती चून लए कते बकबकी... मालिक चलै माझे-माझे कात कतारे लागल चलए खबास...
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लत्तियो को दोख आ लुत्तो क दोख... हे ई ने बुझियौ जे जान छोड़ि देब... ओकरा जकाँ... ईह्हह ... एक टा डेबले ने भेलैन... ई लुत्ता क झोरि देलखिन झोटा... खोलि देलखिन छुट्टा ... भरि गाम पसाहि लगबै लेल... ई त घरढुक्कना... बोतल... बोतल बिन ढाकैन... ने सूप ने कोनिया... भरि घर चालैने चालैन... हे लुत्ती लगाएल भ गेल हुए त आब बिसराम करू... ने माँड़ ने ताड़ी ... फुच्च-फुच्ची कथि के... कथी के एते फुच्च-फुच्ची... ने मालिक... अहाँ के नै यौ... अपन कपार पिटै छी... मैथिल क कपार ... अहा ... ई त इंडो-नेपाल.... हे हे... अइ पार स ओइ पार नीक आ ओइ पार स ई पार... ईह रे कपार... हाथी घोड़ा पालकी.... जै जै बौआलाल की... ने लत्ती ने लत्ता... नाचि एला कलकत्ता... लगले रहि गेल सेहनता... भरि पेट खइतौं... बिदापैत गबितौं... खूब धोलौं .. खूब मँजलौं... मोन रहि गेल अपैत क अपैते...छरपैत रहू... हे चुप करू... एतहि बसू... कतौ जुनि जाउ... तीत हुए वा मीठ बाड़ी क पटुआ खाऊ... हरअ हरअ... हरअ हरअ... धरअ धरअ...
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कोन... भरसे काटि एलौं ... ई नाच कथी पर... आ कथी पर सिंगार... खालिए जखैन पेटो आ पेटारो... भरि जिनगी कटल अन्हारे मे ... आ बुझैत रहलखिन मालिक मलिकार... बाबू भैया कहैथ रहलखिन... चुप रह कनहा... देखै ने छीही हम सब बाँस क दोगे सुरुज उगबै छी ... रे कपर जरू... बेटा त गाम मे टिकबे ने केलौ... आ मोन के बुझबैत रहलें ... बुझबैत रहलएँ ... जे बिसुन रहै छैथुन तोरा झोरी मे... पढ़हुआ सब लागल रहला बिसुन-झोरी थियोरी में .... ओह गॉड पारटिकल...बोस-आइंस्टाइन त ओत पास... आ एत त झा ठाकुर परेकटिकल मे फेल... मगन तिसियौरी मे... जुनि जाह बिदेस... जुनि जाह बिदेस.... गबैत गबैत देसहि भेल बिदेस... हाथ आएल ने सुथन्नी ने सुथन्ना.... रहि गेल चकभक... खिज्जा कन्ना... छलौं कचहरिये... बद बिका गेल चौबन्नी मे... कपार पीटू मधमनि मे...बाँस क दोगे गीदर भुकैए... झोरी मे घुरघुर मूस करै... अहूँ खुस ... हमहू खुस... खुस रहू कि रहू खिसिआएल... गाउ पराती... जियावहु हे....परधान....
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दाँत गेलैन बसही मे ... भरि दिन बैसि क खुटुर खुट्टुर सुपारी भंगै छैथ... भंगठि गेलैन मनोरथ क गाड़ी... उतरि गेलैन पहिया... नहि जानि बुझथिन कहिया.... हे कोहा मे चिक्कस नै,,, जाउ कतौ स चिक्कस आनू.... एकहि हाल... एक गाम माँगू तैयो एक तम्मा आ सात गाम माँगू तैयो एकहि तम्मा... बूझल बूझल नै सोहाइ छी...
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हे हुनका पाछू की थथमारी करै छी... ओ चान पर पानि तकै छैथ... एत त घैले मे पानि नै... रौदी मे दाही... कि दाही मे रौदी की बुझथिन्ह... बुझैछथिन्ह बस उगाही.... उगाहते चलो... उगाहते चलो हते... जब तक घड़ा भर न जाए .. उगाहते चलो... मिथिला अपने भरोसे मालिक ... मैथिली कत स देती थैली... जो रे... कोतबलबा तोहर पतुरिया नाच नचेलकौ...
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