सोमवार, 20 नवंबर 2017

पहिनहुँ कहि चुकल छी

पहिनहुँ कहि चुकल छी
==============
भिन्न भाषा मे, भिन्न मन मे, फेर कहै छी जे
कहि चुकल छी
जे आब, दिशा अगम्य बुझना जाइत अछि
आगू अदृश्य अलोपित जेना सब
किछु रास्ता नहि

कखनो-कखनो किछु-किछु रंग अभरैत अछि
रंग त रंग, रंग होइत छै, मीता
रंग रास्ता नहि होइत छै

हम आब घुमि आब चाहैत छी
घर नहि, घर कत!
घर क पछवारि मे, मीता
जनितहु जे
पछवारि स कोनो रास्ता कतौ नहि जाइत छै
घर त कखनो नै, मुदा हम फिर जाए चाहै छी

फिरनाइ मुश्किल होइत छै
मुश्किले ने! असंभव त नहि ने!
हम कोनो धनुख पर चढ़ि क छूटल बान नहि
हम कखनो ककरो देल गेल जुबान नहि
हम मौरूसी पर खीचल गेल कोनो सीमान नहि
हम त कतौ चलि गेल कियो आन नहि

हम त कतौ गेलौं, ने कतौ स एलौं मीता
बस कदम ताल मे जीवन बितेलौं।
हमरा लेल घुमि एनाइ कि मुश्किल!
कोनो मुश्किल नहि!
मुश्किल घर क पछवारि तक पहुँचनाइ
ओह घर! घर नै, मीता घर नै!
कि घर कि परदेस, मीता घर नै।

मन दुखा गेल घर नै,
मीता, हम मन क पछवारि मे
घूमि आब चाहै छी, मुदा मन नै
मन नै मीता,  अनमनाएल सन जीवन

रंग त रंग, रंग होइत छै, मीता
रंग रास्ता नहि होइत छै!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अनुरोध जे, सुधार क अवसर दी आ विषय स संबंधित सुझाव अवश्ये दी। व्यक्तिगत टिप्पणी नञ दी।