पहिनहुँ कहि चुकल छी
==============
भिन्न भाषा मे,
भिन्न मन मे, फेर कहै छी जे
कहि चुकल छी
जे आब, दिशा अगम्य बुझना जाइत अछि
आगू अदृश्य अलोपित
जेना सब
किछु रास्ता नहि
कखनो-कखनो किछु-किछु
रंग अभरैत अछि
रंग त रंग, रंग होइत
छै, मीता
रंग रास्ता नहि होइत
छै
हम आब घुमि आब चाहैत
छी
घर नहि, घर कत!
घर क पछवारि मे,
मीता
जनितहु जे
पछवारि स कोनो
रास्ता कतौ नहि जाइत छै
घर त कखनो नै, मुदा
हम फिर जाए चाहै छी
फिरनाइ मुश्किल होइत
छै
मुश्किले ने! असंभव
त नहि ने!
हम कोनो धनुख पर
चढ़ि क छूटल बान नहि
हम कखनो ककरो देल
गेल जुबान नहि
हम मौरूसी पर खीचल
गेल कोनो सीमान नहि
हम त कतौ चलि गेल
कियो आन नहि
हम त कतौ गेलौं, ने
कतौ स एलौं मीता
बस कदम ताल मे जीवन
बितेलौं।
हमरा लेल घुमि एनाइ
कि मुश्किल!
कोनो मुश्किल नहि!
मुश्किल घर क पछवारि
तक पहुँचनाइ
ओह घर! घर नै, मीता
घर नै!
कि घर कि परदेस,
मीता घर नै।
मन दुखा गेल घर नै,
मीता, हम मन क
पछवारि मे
घूमि आब चाहै छी, मुदा
मन नै
मन नै मीता, अनमनाएल सन जीवन
रंग त रंग, रंग होइत
छै, मीता
रंग रास्ता नहि होइत
छै!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अनुरोध जे, सुधार क अवसर दी आ विषय स संबंधित सुझाव अवश्ये दी। व्यक्तिगत टिप्पणी नञ दी।