प्रफुल्ल कोलख्यानः मैथिली
लोकप्रिय पोस्ट
जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल
अंगने में हेरायल : अपना के तकैत
सूखल नयन नदी हियमे मरुभूमिक घोर बिहाड़ि
भेद चिनवार आ ऐंठारमे
घोर-मट्ठा, घोर-मट्ठा माएक मन में फुटै इन्होर
सांस्कृतिक उन्मुक्तताक आकांक्षाक रूप मे कविता
उच्चवाचिकता क संभावना स पूर्ण आ लोक बेबहारी
प्रसंग किरण जीः किछ जप, किछ गप
अढ़ौने काज नञ कि सिखौने लाज
जो रे बिधाता!
बुधवार, 1 जून 2016
पुरना लचका
किछ
गप
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अनुरोध जे, सुधार क अवसर दी आ विषय स संबंधित सुझाव अवश्ये दी। व्यक्तिगत टिप्पणी नञ दी।
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अनुरोध जे, सुधार क अवसर दी आ विषय स संबंधित सुझाव अवश्ये दी। व्यक्तिगत टिप्पणी नञ दी।