प्रफुल्ल कोलख्यानः मैथिली
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जो रे बिधाता!
सोमवार, 18 सितंबर 2017
ढला हुआ हुस्न और थका हुआ इश्क
ढला हुआ हुस्न और थका हुआ इश्क
जज्बात के कई रंग हुनर तो कोई नहीं
मुसकुराते रहे खौफज़दा जो बेखबर इश्क
कभी नजर मिलीं नहीं आंख जो रोईं नहीं
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