जो रे बिधाता!
गीत नाद क बेर बीत गेल। रमन-चमन पूरा भेल। पाहुन परख, लिआओन हकार सब स
निश्चिंत भ जगदेव बाबू आब आराम क कोनटा पकड़ लेल छरपटाइ छला। भेल बियाह, आब करब
की। आगू जेहेन कपार। तीन साल स बौआइत-बौआइत मन एकदम असोथकित भ गेलैन। केकर-केकर नै
दाढ़ी-मोछ धेलैन। बूझू त छोट-पैघ क विचार छोड़ि तीन साल पैर धड़िये मे बीत गेलैन।
कोन नाच नै नचला जगदेव बाबू। करजा-बरजा सधैत रहतैन। कमलकांत क बियाह मे सब हिसाब
बरोबरि भ जेतै। चिंते कोन एक टा बेटी। आब सेहो बियाहल। एकटा बेटा से एखनो कुमार।
बचला दू परानी त जानथि जगनाथ। जानकी क माए रूपा सेहो गदगद छलीह। सखी, बहिनपा जमाए
के कियो दूसलकैन त नै। देह धजा त ककरो स सेहनतगरे छैन। आब ककरो पेट में जे रहै।
अकानि क बजली –
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सुनै छियै
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कहू ने
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हाँ ताबे खा लेब त ख लिअ.. जमाए त कने रहिये क खेता..
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द दिअ
रूपा थारी मे सोहारी साँठ लगली। पहिने त जानकी माए क मदति क दै छलै। परसनाइ
अरसनाइ। मुदा बियाह क बाद त ठीक स मुँहो देखबाक संजोग नै। ओना त जगदेव बाबू आ रूपा
मे कहियो बकझोंझों नहि भेलैन मुदा दू साल स बेटी बियाह क चिंते मन नमनाएल आ
खँझुआएल रहै छलैन। आब कने जका मन शांत भेल जाइत छैन। बेटी क माए जे बुझै छै से बाप
नै बुझै छै। बाप बुझतै त नीचा स ऊपर तक मन लेस देतै। जनती भगवती। आर त नै किछ मुदा
सनकीरबो देखला पर जेना किसोरिया किसोरिया चिचिआ उठै छली जानकी, रूपा के मन थरथरा
जाइत छलैन। बाजि किछ नै सकै छलीह। आ बजबे
की करितैथ! किसोरिया मिडिल स्कूल मे जानकी स दू क्लास ऊपर छलै। ने सामाजिक हैसियत
छलै आ ने आर्थिक। गरीब क बेटा। बेगरते एम्हर-आम्हर बोनियो-बेगार क लैत छल क्लास मे
दोसर स्थान सेहो लबैत छल। पहिल स्थान त पचकौड़ी बाबू क बेटा रमाकांत के भेटैत
छलैन। लोक सभ क कहनाम जे किसोरिया मुदा रमाकांत स सेसर। मिडिल स्कूल क बाद
किसोरिया क नाम जिला हाइ स्कूल मे लिखा गेलै। एक टा एनजीओवाला क नजरि ओकरा पर पड़ि
गेलै। ओकरा बाप के कहि सुनि उएह एनजीओवाला जिला हाइ स्कूल ल गेलै। गाम क हाइ स्कूल
क हालत ठीक नै छलै। जानकी पढ़ै मे औसत छली। मुदा पढै क लगन छलैन।
जगदेब बाबू पीढ़ी पर बैस रहल छलाह। बेटी जमाएवाला घर, जगदेब बाबू कमे काल
अंगना अबै छलाह। एते काल अंगना मे ठाढ़ भेला स मन असहज भ गेल छलैन। सामने थारी मे
सोहारी आ अल्लू क भूजिया रखैत, रूपा अपनो बैस रहली।
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हे असथिरे-असथिरे खाऊ। किछ गपो करबाक अछि।
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की बात!
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बात किछ नै। काल्हि स जमाए के की चिकसे खाएल देबैन। चाउर
आ रीफाइन दूनू खतमे जकाँ भ गेल छै। दस दिन बिया क नै भेलैए। केहेन लगतै!
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पहिने बजबा क चाही। भोरे-भोर कियो उधार नै दै छै से नै
बुझल अछि!
जगदेव बाबू खाइतो छला, सोचितो छला। रमन-चमन त भेल। आबो त ठीक स बुझियै जमाए
असल मे करै की छथि। दिल्ली रहै छैथ। दिल्ली रहनाइ त कोनो काज नै भेलै। दिल्ली मे
की सब हाकिमे-हुकुम रहै छै! ज जानकी के किछ भाँज लागल होय। मुदा ओकरा पूछबै कोना।
पूछबै त डोका सन क आँखि तरैर क बिन बजने पूछि देत जे की बुझि क हुनका नाँगड़ि स
बान्हि देलौं! जे बूझि क बान्हि देलौं सएह करै छैथ!
दस दिन क बाद जमाए गेल खिन। जगदेव बाबू पूछलखिन, ‘कहिया फेर एबै!’ त छूटिते जमाए
कहलखिन्ह, ‘दिल्ली जाने के पहले जिंकी से मिलने आउंगा।’ जगदेव बाबू के आतमा झरकि गेलैन।
मुदा बजितैथ की! जमाएवाली बात।
दू दिन का बाद जगदेव बाबू के भनकी लगलैन। भनकी जे जेबा स पहिने जानकी स किछ
टोना मानी भेल छलैन। कोन बात पर की परसंग! से नहि जानि। दस दिन तक जमाए नहि घुरल
खिन त जगदेव बाबू के कान टाढ़ भेलैन। कतौ स उड़ती खबरि एलैन जमाए दिल्ली जा चुकल
छथिन्ह। मोन मे नाना तरह क शंका उठैन। मुदा संतोख क गप जे रजनी-सजनी स निकलि
रोजी-रोटी क चिंता मे टान मे दिल्ली चलि गेला त की अनुचित। चिंता त तखैन भेलैन जखन
पता चललैन जे जानकी नोरेझोरे तबाह छैथ। अजुका जुग मे मास दिन स अपन ककरो फोनो ने
अबै त चिंता त भेनाइ सोभाविक। मुदा कएल की जा सकैत अछि। जानकी क नोर माए क आँखि
बाटे बह लगलैन। जगदेव बाबू आतुर प्राण समैध के फोन केलखिन त पता चललनि जे हुनको
कोनो खबरि नै छैन। फोन लगै नै छैन आ पता बुझल ने छैन। उलहन ई जे सासुर मे पढ़िक
माटि खुआ देलकैन तांइ हुनकर बेटा बनौल भ गेलैन। वेवस्था क पाइ ओकरे बैंक मे जमा
भेल रहै। बेटी बियाह लेल ओ अपने तरफराइ छैथ। मुदा अइ छौंड़ क कोनो भाँजे ने। थाना
पुलिस, कोट कचहरी सभ दिस मन दौड़ लगलैन। अंत मे घुरिया फिरिया क इएह जे, जनता
बैदनाथ। जे कपार मे लिखल हेतैन।
दू साल बित गेलैन। कोनो खबरि नै। आँखि क नोर सुखा गेलैन जानकी क। मुदा मुँह
पर मुस्की ने घुरलैन। दू सा स ऊपर भ गेलैन। अगल-बगल के लोक सभक मुँह स ओलबोल
निकलनाइयो बंद भ गेलैन। बर जीबैत मसोमात क जीवन मुरझइत चलि गेलैन जानकी के। बेटी
अनबियाहल छलैन त जगदेव बाबू क चिंता दोसर रहैन। आब अनदुरागमनल बेटी क चिंता दोसर।
आधा गाम क लोक त दिल्लिये रहैत अछि। ककरा-ककरा ने कहखिन जगदेव बाबू, कने
खोज खबरे लेब क बास्ते। मुदा किछ पता ने चललैन। किसोरिया सेहो दिल्लिये रहैत अछि। पछिला
बेर ओकरा कहने रहथिन, कने पता करै लेल, ज ओ किछ क सके। काल्हि किसोरिया गाम पहुँचल
अछि। जगदेब बाबू क मन मे कने संचार भेलैन। जानकी क हेरायल मोन के हरियाएल देखि जगदेव
बाबू क आसा जगलैन।
जानकी क माए कहलखिन जे परसू किसोरिया दिल्ली फिर जेतै। जानकी सेहो ओकरे
संगे दिल्ली चलि जेती। जगदेव बाबू क मोन भेलैन जे पुछथिन जे जमाए क किछ पता चललनि।
मुदा सहास ने भेलैन। मुहँ स बस एतबे खसलैन – बेस।
जिंकी दिल्ली चलि गेली। ककरो मुँह कियो की रोकतै। बड़की मसोमात क मुँह स त
अनायासे खसलैन। जो रे बिधाता! बियाहल ककरो आ दुरागमनल ककरो।